ये जो दिन के अँधेरे हैं
कुछ काले मटमैले से सवेरे हैं
उन काली स्लेटो में
उजली लकीरे खीचना चाहता हूँ
मैं इस देश का एक और सिपाही हूँ
कुछ सूखे से कमजोर खड़े से पेड़ो को
अपने रक्त से सीचना चाहता हूँ ||
बेतहास भागती टेढ़ी मेढ़ी सी
बेअंजाम गलियों को काट कर
कुछ पक्के नए से, सीधे रौशनी से भरे
राहों को पाटना ही मेरा संकल्प हैं
छोड़ दिया हैं मैंने अपने अपनों को
अब इस देश के सिवा, नहीं मेरा कोई बिकल्प है||
Picture used from http://noelrt.com/wp-content/uploads/2009/01/soldier-silhouette.gif

बहुत शानदार अभिव्यक्ति..बधाई.
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