Saturday, June 26, 2010

अपना देश

ये ज़मी ये आसमा 
छोड़ कर इसे कहाँ जाऊ
बसी है इस मिट्टी की खुशबू
मेरी सासों में
इस खुशबू को खुद से
कहाँ छुपाऊ ||
मेरा देश तो मेरा है
इसे छोड़ के
घर कहाँ बसाऊ
मकान तो कहीं भी बना लूँगा
पर समां सकूँ अपने देश को इसके अन्दर
इतनी जगह मै कैसे लाऊ||
मुझे बताओ
की एक मकान को
अपना मुकाम मै  कैसे बनाऊ
मेरा दिल तो हिंदी है
इसे कोई और भाषा कैसे समझाऊ
कुछ बाते तो मुझे हिंदी में ही अच्छी लगती है
भला हर बातो का अंग्रेजी अनुबाद कैसे बनाऊ ||

3 comments:

  1. .... बेहतरीन!!!

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  2. Anonymous10:49 PM

    "मेरा दिल तो हिंदी है
    इसे कोई और भाषा कैसे समझाऊ
    कुछ बाते तो मुझे हिंदी में ही अच्छी लगती है
    भला हर बातो का अंग्रेजी अनुबाद कैसे बनाऊ"

    सच्चे और अच्छे उदगार

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  3. Rahul ki apki is rachna ko maine humara haryana blog par shaire ki hai
    http://bloggersofharyana.blogspot.com

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