जब जब कमजोरो और कुचलो पे (Ref to recent train killing)
जुल्म कही हो जाता है
कम्बल ओढ़ के ये समाज
दूर कही सो जाता है ||
वही बेबस कुचलो से कोई
जब आगे बढने आता हैं
दैत्य बन के फिर वही समाज
सामने खड़ा हो जाता है ||
कुछ पता नहीं क्यों मुझको
कुछ खास समझ नहीं आता हैं
मर जाते हैं हजारो बेमतलब ही (ref to bhopal gas killing)
तब क्या समाज तेल लेने जाता है ||
जब आती हैं न्याय करने की बारी
कोई खड़ा नहीं हो पाता है
बाहुवली और बलशाली के पीछे
खुद को खड़ा वो पाता हैं || (Congress full supporting its act to send anderson back)
लुटती है इज्जत जब चलती ट्रेनों में
कोई कहाँ बचाने आता हैं
ये धरम करम का रखवाला
क्या गा&**&% मा%^^& जाता हैं(this is wht i want to write but....)
क्यों कायर इतना बन जाता है ||
शब्दों की गहराई अचूक है !! जब साथ हो जाती है तो नयी दुनिया बना लेती है !! मैं इन्ही शब्दों का शब्दकार हु , शब्दों से खेलना मेरी आदत , शब्दों में जीना मेरी हसरत !! जुडये मेरे साथ , कुछ सुनिए कुछ सुनाइए , एक दुसरे का हौसला बढाइये||
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
मंजिलो में चलते चलते कुछ राह बदल जातें हैं शुरुआत कहाँ होती है ये ख्तम कहीं होते है .... अक्सर राहो में चलते चलते हमराह बदल जातें है एक मोड़...
-
Sukun on my voice on youtube: http://youtu.be/TZSV1CnoRkY रात की मिट्टी को उठा कर हाथ से रगड़ रहा था , की शायद उनकी तन्हाई की...
-
किसी के इश्क की इम्तिहा न ले कोई किसी के सब्र की इंतिहा न हो जाए प्यार मर न जाए प्यासा यु ही और आंशुओ के सैलाब में ज़िन्दगी न बह जाये … ...
बहुत ज़बरद्स्त ..........
ReplyDeletewaah bada sahi kataksh kiya
ReplyDeletevery well said..its reality
ReplyDeletehats off to u sir ji..
bahut achha likhte hain aap.
...बहुत खूब!!!
ReplyDeleteआज जो समाज में हो रहा है..उन हालातों पर आक्रोशित होना लाज़मी है...और एक संवेदनशील मन से क्षुब्ध हो कर ऐसे ही शब्द निकलते हैं....सार्थक लेखन
ReplyDelete