मैं देखती हूँ दुनिया को
अपने कंप्यूटर के अंदर के windows से |
की अपने इस इमारत में
बाहर देखने के लिए खिड़किया नहीं ||
मिलती हूँ अपने परिवार और दोस्तों से
फेसबुक , ऑरकुट और लिंक्ड इन पे |
की मेरी ब्यस्त ज़िन्दगी में
घर जाने आने का वक़्त नहीं ||
बनती रहती हूँ लॉजिक सारी दुनिया के लिए
अपनी ज़िन्दगी कभी ऑन टाइम चलती नहीं |
पंक्चुअल हूँ अपने हर क्लाएंट मीटिंग में
पर समय पर घर कभी, पहुचती नहीं ||
बखूवी manage करती हूँ बड़ी टीम को
पर घर का मैनेजमेंट बिगड़ सा गया हैं|
Project तो टाइम में चल रहा है
पर घर का मौसम उजड़ सा गया है ||
सात समुंदर दूर , हर कोई जानता है मुझे
पर घर का पडोसी पहचानता नहीं |
प्रोजेक्ट पे सब अंडर कण्ट्रोल है
घर पे टिंकू कोई बात मानता नहीं ||
पिछले दिनों घर के लैपटॉप पे
ड्राफ्ट इ मेल मिला था
टिंकू ने God@जीमेल.कॉम पे एक ख़त लिखा था
कहता हैं , मम्मी रोज घर क्यों नहीं आती |
सोनू के मम्मी की तरह , कहानिया क्यों नहीं सुनाती||
पढते पढते मै आसुओ को रोक ना सकी
जब कर ना सकी गिल्ट पे काबू
जब कर ना सकी गिल्ट पे काबू
तो देने God को clarification ,
दो कदम आगे बढ़ी|
पर इन इमारतों से बाहर झाकने के लिए
फिर से,
कोई खिडकिया नहीं खुली ||