तेरी आँखों में खोये रहते हैं
तेरी आँखों में खोये रहते हैं
दिन भर सोये सोये से रहते हैं
तेरी आँखों में खोये रहते हैं
...
तेरी जुल्फों को हटाने की कशिश
तेरी जुल्फों को हटाने की कशिश
हम तो तेरे पास खड़े रहते हैं
हम तो तेरे पास खड़े रहते हैं
तेरे आँखों में खोये रहते हैं ...१
....
कितनी गहरी सी हैं आँखे , उसपे हिरनी सी चमक
कितनी प्यारी हैं ये बातें , उसपे सोंधी सी महक
हम तो पल भर भी नहीं हटते हैं
तेरे आँखों में डूबे रहते हैं ...१
(Picture used from www.flickr.com)
शब्दों की गहराई अचूक है !! जब साथ हो जाती है तो नयी दुनिया बना लेती है !! मैं इन्ही शब्दों का शब्दकार हु , शब्दों से खेलना मेरी आदत , शब्दों में जीना मेरी हसरत !! जुडये मेरे साथ , कुछ सुनिए कुछ सुनाइए , एक दुसरे का हौसला बढाइये||
Monday, May 31, 2010
Sunday, May 30, 2010
मनवा करे है धक् धक्
(नीचे लिखे पोएम को गाने की तरह पढ़िए , ये एक इंतज़ार करती गाव की औरत की बारे में है )
खाली मनवा करे है धक् धक्
कोसे है दिल को , करे हैं बक बक ....खाली मनवा ||
गए हैं दूर , पिया हमसे ,
भाए ना कुछ कुछ , पिया तबसे
जुगुनुवा से करे हैं बातें
आधी रतिया काटे हैं तन को ....खाली मनवा ||
नदिया छोर , का करे है कस्ती ?
एक पग ना चले है, कस्ती
करे हैं डगमग , पउवा ना सम्हले
कैसे भर लाऊ कुए से पानी .... खाली मनवा ||
भरा हैं आंखन , करे हाउ डब डब
पढ़ा ना जाए , मनवा भर आये
कैसे खोलू चिठिया तोरा
हथिया मोरा पत्थर हो जाये ....खाली मनवा||
खाली मनवा करे है धक् धक्
कोसे है दिल को , करे हैं बक बक ....खाली मनवा ||
गए हैं दूर , पिया हमसे ,
भाए ना कुछ कुछ , पिया तबसे
जुगुनुवा से करे हैं बातें
आधी रतिया काटे हैं तन को ....खाली मनवा ||
नदिया छोर , का करे है कस्ती ?
एक पग ना चले है, कस्ती
करे हैं डगमग , पउवा ना सम्हले
कैसे भर लाऊ कुए से पानी .... खाली मनवा ||
भरा हैं आंखन , करे हाउ डब डब
पढ़ा ना जाए , मनवा भर आये
कैसे खोलू चिठिया तोरा
हथिया मोरा पत्थर हो जाये ....खाली मनवा||
अर्थ प्यार का
तेरे तन्हइयो के गम में
हम बार बार मरते रहे
हर सास बोझ लगती थी हमे
इसलिए दिल के बोझ , बढते रहें||
...
उठाया नहीं गया एक दिन
ये बोझ मुझपे भारी से हो गए
ज़ला डाला दिल को, टुकडो में काट कर
आंशुओ के सैलाब में , ये कतरा कतरा बह गए ||
......
दिल जो ना रहा, मन ,खाली सा हो गया
चिराग बुझ गए तो , मैं सवाली सा हो गया
कम से कम जुड़े थे, तेरे तन्हइयो की यादो से
अब तो बेदिल मैं , भिखारी सा हो गया ||
....
भटका कहाँ कहाँ , मैं खुशियों की दौड़ में
गया जहाँ भी, दिलजले मिले
खुदा से मांगी मोहलत , मोहब्बत के नाम पे
की आधी ज़िन्दगी तो मैंने , कतरों में काट दी ||
......
दिखा आइना मुझे , उपरवाला भी हस पड़ा
दी तुम्हे चाहत का तोफा , तुमने क्या समझ लिया
रख लेते उसे एक कोने में , कहाँ पूरा दिल चाहिए था
ऐसी अनमोल यादो के , तुमने कतरों में बदल दिया||
.....
आपने नादानी पे , हम खुद ही हस पड़े
एक हीरा था मेरे पास , ना समझ सके
कद्रदान था खुदा , मुझपे फिर इंनायत हुई
इसबार हम प्यार को , कतरा ना होने देंगे
तन्हाई , दूरिया , दर्द या खुशी मिले जो भी
हम फिर से इन्हें, खुदा कसम , बोझ ना कहेंगे |
हम बार बार मरते रहे
हर सास बोझ लगती थी हमे
इसलिए दिल के बोझ , बढते रहें||
...
उठाया नहीं गया एक दिन
ये बोझ मुझपे भारी से हो गए
ज़ला डाला दिल को, टुकडो में काट कर
आंशुओ के सैलाब में , ये कतरा कतरा बह गए ||
......
दिल जो ना रहा, मन ,खाली सा हो गया
चिराग बुझ गए तो , मैं सवाली सा हो गया
कम से कम जुड़े थे, तेरे तन्हइयो की यादो से
अब तो बेदिल मैं , भिखारी सा हो गया ||
....
भटका कहाँ कहाँ , मैं खुशियों की दौड़ में
गया जहाँ भी, दिलजले मिले
खुदा से मांगी मोहलत , मोहब्बत के नाम पे
की आधी ज़िन्दगी तो मैंने , कतरों में काट दी ||
......
दिखा आइना मुझे , उपरवाला भी हस पड़ा
दी तुम्हे चाहत का तोफा , तुमने क्या समझ लिया
रख लेते उसे एक कोने में , कहाँ पूरा दिल चाहिए था
ऐसी अनमोल यादो के , तुमने कतरों में बदल दिया||
.....
आपने नादानी पे , हम खुद ही हस पड़े
एक हीरा था मेरे पास , ना समझ सके
कद्रदान था खुदा , मुझपे फिर इंनायत हुई
इसबार हम प्यार को , कतरा ना होने देंगे
तन्हाई , दूरिया , दर्द या खुशी मिले जो भी
हम फिर से इन्हें, खुदा कसम , बोझ ना कहेंगे |
Friday, May 28, 2010
I am angry:-|
( I am deeply hurt by death of 70 + people on suspected Maoists blast!!i am angry on killers..but i am more angry on people who have failed us.)
वो बंद कमरों में , चरखा चला रहें हैं ..
कोई देखो , बाहर खुनी , कत्लेआम मचा रहें हैं ...
.......
गुम हैं ठंडी हवाओ के शोर में इतना ..
मजबूर जनता का शोर , नहीं सुन पा रहें हैं ...
नंगा कर दिया हैं इन पापियों ने , मजबूर लोगो को
वो साहब बंद कमरों में चरखा चला रहें हैं ...
......
वो खून की होली हर रोज खेलते जा रहें हैं
कभी स्टेशनों , कभी पटरियों पे , लहू नज़र आ रहें हैं ,
ये व्यस्त हैं चूजों की गिनतियो में ,
घर बैठे गाँधी टोपी बना रहें हैं
....
हक़ नहीं हैं इन लोगो को एक दिन और जीने का
आँखे खोल जो जानता को मरते देख रहें हैं
कैसे दरिन्दे हैं उजली टोपी पहने
भूकी जानता को आन्गिठेयो में सेक रहें हैं
वो बंद कमरों में , चरखा चला रहें हैं ..
कोई देखो , बाहर खुनी , कत्लेआम मचा रहें हैं ...
.......
गुम हैं ठंडी हवाओ के शोर में इतना ..
मजबूर जनता का शोर , नहीं सुन पा रहें हैं ...
नंगा कर दिया हैं इन पापियों ने , मजबूर लोगो को
वो साहब बंद कमरों में चरखा चला रहें हैं ...
......
वो खून की होली हर रोज खेलते जा रहें हैं
कभी स्टेशनों , कभी पटरियों पे , लहू नज़र आ रहें हैं ,
ये व्यस्त हैं चूजों की गिनतियो में ,
घर बैठे गाँधी टोपी बना रहें हैं
....
हक़ नहीं हैं इन लोगो को एक दिन और जीने का
आँखे खोल जो जानता को मरते देख रहें हैं
कैसे दरिन्दे हैं उजली टोपी पहने
भूकी जानता को आन्गिठेयो में सेक रहें हैं
Monday, May 24, 2010
भाग्य !!
ए चित्रगुप्त
सुना है एक लेखनी है आपके पास
जो रखती है हर किसी का हिसाब ||
मेरे कहानियों में कुछ पन्ने , मटमऐले से है
गर्द और दागदार कुछ छन , अकेले से हैं ||
दे सकेगो वे लेखनी , मुझे एक दिन के लिए
मुझे कुछ किस्सों के किरदार मिटाने हैं
ज़िन्दगी के गहरइयो में जा कर
कई दिलो के हिसाब चुकाने हैं ||
महान इंद्र
सुना है बूंदों का सागर है आपके हाथो में
हर तपती ज़मी की , प्यास बुझाते हो
बंजर , पर्वत , नदी , झरने
सबको बस आप ही बनाते हो ||
क्या दे सकोगो कुछ बूंदों मेरे भी हाथो में.....
मेरे बागो में में भी, सूखे कुछ दरख़्त हैं
बहूत कमजोर से खड़े हैं एकटक आँखे ले के
बाहर से दिखते , बहुत ही शख्त हैं ||
कुछ बुँदे शायद बदल दे मेरे बागो को
शायद नए पत्ते निकल आये , बूंदों को देखकर
पतझड़ जाए ना जाए मेरे बागो से गम नहीं
शायद खुशिया आ जाए , पल भर का सावन सोच कर ||
सुना है एक लेखनी है आपके पास
जो रखती है हर किसी का हिसाब ||
मेरे कहानियों में कुछ पन्ने , मटमऐले से है
गर्द और दागदार कुछ छन , अकेले से हैं ||
दे सकेगो वे लेखनी , मुझे एक दिन के लिए
मुझे कुछ किस्सों के किरदार मिटाने हैं
ज़िन्दगी के गहरइयो में जा कर
कई दिलो के हिसाब चुकाने हैं ||
महान इंद्र
सुना है बूंदों का सागर है आपके हाथो में
हर तपती ज़मी की , प्यास बुझाते हो
बंजर , पर्वत , नदी , झरने
सबको बस आप ही बनाते हो ||
क्या दे सकोगो कुछ बूंदों मेरे भी हाथो में.....
मेरे बागो में में भी, सूखे कुछ दरख़्त हैं
बहूत कमजोर से खड़े हैं एकटक आँखे ले के
बाहर से दिखते , बहुत ही शख्त हैं ||
कुछ बुँदे शायद बदल दे मेरे बागो को
शायद नए पत्ते निकल आये , बूंदों को देखकर
पतझड़ जाए ना जाए मेरे बागो से गम नहीं
शायद खुशिया आ जाए , पल भर का सावन सोच कर ||
पैसा पैसा
कभी बना था पैसा लोगो के लिए
आज पैसे के लिए लोग बनते हैं
सुबह शाम भाग रही है दुनिया
हर चेहरा पैसे के ले बदलते हैं
..........
कितना अजीब हैं पैसा
हर पल बसेरा बदल लेता हैं
प्यार इतना फिर भी है, पैसे से
हर कोई खुद को, बदल देता हैं
.....
जानते नहीं हैं ज़िन्दगी की कीमत
हर कीमत वस, पैसा ही बनाती हैं
अपने पराये, अब खून से नहीं
पैसे के वजन से आकी जाती हैं
....
इस अंधेर ज़माने में
पैसा ही चमकता सितारा है
मंजिले मिलेंगी उन्हें , जिन्हें हासिल हैं पैसा
वाकिओ के लिए , भगवान् ही सहारा हैं
..
Picture taken from www.flickr.com
आज पैसे के लिए लोग बनते हैं
सुबह शाम भाग रही है दुनिया
हर चेहरा पैसे के ले बदलते हैं
..........
कितना अजीब हैं पैसा
हर पल बसेरा बदल लेता हैं
प्यार इतना फिर भी है, पैसे से
हर कोई खुद को, बदल देता हैं
.....
जानते नहीं हैं ज़िन्दगी की कीमत
हर कीमत वस, पैसा ही बनाती हैं
अपने पराये, अब खून से नहीं
पैसे के वजन से आकी जाती हैं
....
इस अंधेर ज़माने में
पैसा ही चमकता सितारा है
मंजिले मिलेंगी उन्हें , जिन्हें हासिल हैं पैसा
वाकिओ के लिए , भगवान् ही सहारा हैं
..
Picture taken from www.flickr.com
Saturday, May 22, 2010
मै तो मैं हूँ
मैं कौन हूँ
कोई बता दे मुझे
क्या करे की मिले खुशी
कोई समझा दे मुझे |
देखा जिस किसी को
सब सवाल ही लगे
परमात्मा , आत्मा
सब ख्याल ही लगे ||
आँखे मूंद चलू
या , खुद के रस्ते बनाऊ
या, फिर दुसरो के लिए
खुद ही, एक रास्ता बन जाऊ |
ज़न्दगी कितनी सकरी सी है
दो हाथ कुछ खास खुले नहीं
आस पास की दीवारों ने , ज़कड़ दिया
पंख खोल , कभी आसमानों में उड़े नहीं ||
ज़ब खोले नहीं सब राज़ पहेलियो के
तो सब प्रशनो की गुथी कहा से लाऊ
कुंजी तो बाट, मैं भी सकता हूँ
पर खुल जाए, वो ताले कैसे बनाऊ |
बहूत पढ़ा हैं पन्नो में , किस्से ज़िन्दगी के
उन्हें काट के अपनी कस्ती कैसे बनाऊ
बहूत करीब हु मैं अपनी कहानी से
मैं तो मैं ही हु ,
भला मैं, उन पन्नो सा कैसे बन जाऊ ||
(Picture used from http://www.rogermurrell.com)
कोई बता दे मुझे
क्या करे की मिले खुशी
कोई समझा दे मुझे |
देखा जिस किसी को
सब सवाल ही लगे
परमात्मा , आत्मा
सब ख्याल ही लगे ||
आँखे मूंद चलू
या , खुद के रस्ते बनाऊ
या, फिर दुसरो के लिए
खुद ही, एक रास्ता बन जाऊ |
ज़न्दगी कितनी सकरी सी है
दो हाथ कुछ खास खुले नहीं
आस पास की दीवारों ने , ज़कड़ दिया
पंख खोल , कभी आसमानों में उड़े नहीं ||
ज़ब खोले नहीं सब राज़ पहेलियो के
तो सब प्रशनो की गुथी कहा से लाऊ
कुंजी तो बाट, मैं भी सकता हूँ
पर खुल जाए, वो ताले कैसे बनाऊ |
बहूत पढ़ा हैं पन्नो में , किस्से ज़िन्दगी के
उन्हें काट के अपनी कस्ती कैसे बनाऊ
बहूत करीब हु मैं अपनी कहानी से
मैं तो मैं ही हु ,
भला मैं, उन पन्नो सा कैसे बन जाऊ ||
(Picture used from http://www.rogermurrell.com)
Friday, May 21, 2010
बिछोह
अहू अहू करे , दिलवा हमार
कहे नहीं कुछ भी , कभी
कभू करे बतिया हज़ार
अहू अहू करे
दिलवा हमार
...
टुक टुक देखे , कभी
खोले किबाड़
कैसन कैसन बतिया , आये मन में
डर लगे है , सरकार
कैसे खोले हम किबाड़
अहू अहू करे ...दिलवा हमार
....
जला हाउ दिलवा ऐसे
चूल्हा में कोयला जैसे
हो ना जाये राख , दिलवा हमार
.....
किते दिन बीते है रोज
बीते नहीं विरहा के शोर
खट्टे से लगे है पल
डंक कटे हैं जोर, बिछुवा हज़ार
अहू अहू सा करे हैं , दिलवा हमार
....
Sunday, May 16, 2010
रक्त
कुछ लाल सा हैं
कब से, उबल रहा
मचल रहा ......
तोड़ने को हर हदे
दिल की हर सरहदे
चल रहा
कुछ लाल सा हैं ...उबल रहा
....
कोई साथ दे अगर
एक हाथ दे अगर
कोई तो दिशा दिखा
कोई रास्ता बता
कुछ लाल सा ....उबल रहा ...
....
ठाहरा नहीं , कही
जब से मिली ज़मी
बहता ही रहा
कितने दिए सितम
लेकिन हर जनम
सहता ही रहा
कुछ लाल सा है.....उबल रहा
..
कोई आग तो जलाये
कुछ लकडिया तो लाये
चुपचाप कब से बैठा
कही ठंडा हो ना जाए
कुछ लाल सा है ये ...कब से उबल रहा
......
पंदंदिया बना के
नलयो में बांध डाला
कुछ कर ना जाए ये
कबसे मचल रहा
कुछ लाल सा है ...कब से मचल रहा
....
Thursday, May 13, 2010
Meri Bujji (My Son)
आये तुम , आये तुम
आये तुम , ज़िदगी खिल गयी
साथ थे हम , अकेले अकेले
अब जीने की वजह मिल गयी
....
आँखे अच्छी लगती हैं
बाते अच्छी लगती हैं
जो कुछ भी बोलते हो
अमृत सा घोलते हो
तुम आये तो , हर खुशी मिल गयी
तुम आये तो....
......
छोटी सी आँखे प्यारी
तुम हो अब जान हमारी
अक्सर जो हस्ते रहते हो
कितने प्यारे लगते हो
...............
आये तुम , ज़िदगी खिल गयी
साथ थे हम , अकेले अकेले
अब जीने की वजह मिल गयी
....
आँखे अच्छी लगती हैं
बाते अच्छी लगती हैं
जो कुछ भी बोलते हो
अमृत सा घोलते हो
तुम आये तो , हर खुशी मिल गयी
तुम आये तो....
......
छोटी सी आँखे प्यारी
तुम हो अब जान हमारी
अक्सर जो हस्ते रहते हो
कितने प्यारे लगते हो
...............
Thursday, May 06, 2010
Kuch Naya ( Life)
कुछ अलग लिखना चाहता हु
ज़िन्दगी , रस्ते ,प्यार से अलग
कुछ और आगे बदना चाहता हूँ
...
साथ दे अगर शब्दों के पर
पंख लगा के और उचा उड़ना चाहता हु
मन के बंधन तोड़ कर
कुछ और कहानियों से जुड़ना चाहता हु
...
लिखना चाहता हु कुछ अलग
ऐसी कहनिया जिसे कोई कवि ना बना पाया हो
कुछ ऐसे किस्से , एकदम नए से
जो आज तक पन्नो पे , कोई गड ना पाया हो
....
तोडना होगा , कुछ जंजीरे उंगलियों के
दिल के गहरयियो के खंगालना होगा
बन के बैठे हैं जो चेहरा , चेहरे के ऊपर
कुछ पुराने नक़ाबो को उतारना होगा
...
अनकहे कुछ खवाब बेताब हैं नज़रे मिलाने को
उन्हें कुछ कलमो का सहारा चहिये
उभर आयेंगे ज़मी से हर किनारा तोड़ कर
बस एक फिरदौस कवि का , इशारा चाहिए
ज़िन्दगी , रस्ते ,प्यार से अलग
कुछ और आगे बदना चाहता हूँ
...
साथ दे अगर शब्दों के पर
पंख लगा के और उचा उड़ना चाहता हु
मन के बंधन तोड़ कर
कुछ और कहानियों से जुड़ना चाहता हु
...
लिखना चाहता हु कुछ अलग
ऐसी कहनिया जिसे कोई कवि ना बना पाया हो
कुछ ऐसे किस्से , एकदम नए से
जो आज तक पन्नो पे , कोई गड ना पाया हो
....
तोडना होगा , कुछ जंजीरे उंगलियों के
दिल के गहरयियो के खंगालना होगा
बन के बैठे हैं जो चेहरा , चेहरे के ऊपर
कुछ पुराने नक़ाबो को उतारना होगा
...
अनकहे कुछ खवाब बेताब हैं नज़रे मिलाने को
उन्हें कुछ कलमो का सहारा चहिये
उभर आयेंगे ज़मी से हर किनारा तोड़ कर
बस एक फिरदौस कवि का , इशारा चाहिए
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Sukun on my voice on youtube: http://youtu.be/TZSV1CnoRkY रात की मिट्टी को उठा कर हाथ से रगड़ रहा था , की शायद उनकी तन्हाई की...
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किसी के इश्क की इम्तिहा न ले कोई किसी के सब्र की इंतिहा न हो जाए प्यार मर न जाए प्यासा यु ही और आंशुओ के सैलाब में ज़िन्दगी न बह जाये … ...