Friday, June 12, 2009

Aimless...

कभी दिशा
तो कभी
दिशाहीन हु मैं...
न ही शुरुआत,
न ही अंत,
बेखबर ,
रौंदी सी ज़मीं हु मैं...
आसमा हु कभी
चादर की तरह लपेटे
बदलो सी कमीज़ भी हु
आई हवाए जिस दिशा से
उस दिशा से लपटी ताबीज भी हु
कभी दिशा तो कभी दिशाहीन भी हु...
नैदियो की धार हु
नावों के मजधार भी हु
गूंजती नदियों की किलकार भी हु
गिर के बिखर जाते समुन्दर पे
गूंजती तट की मधुर ललकार भी हु

No comments:

Post a Comment

कुछ कहिये

आज़ाद

नहीं नापता मैं खुद को तेरे पैमाने से .. मेरी तासीर मेल न खायेगी  इस ज़माने से ।। अपनी जेब में रख  तेरे कायदे कानून .. मैं नहीं टूटने वाला ते...