कभी दिशा
तो कभी
दिशाहीन हु मैं...
न ही शुरुआत,
न ही अंत,
बेखबर ,
रौंदी सी ज़मीं हु मैं...
आसमा हु कभी
चादर की तरह लपेटे
बदलो सी कमीज़ भी हु
आई हवाए जिस दिशा से
उस दिशा से लपटी ताबीज भी हु
कभी दिशा तो कभी दिशाहीन भी हु...
नैदियो की धार हु
नावों के मजधार भी हु
गूंजती नदियों की किलकार भी हु
गिर के बिखर जाते समुन्दर पे
गूंजती तट की मधुर ललकार भी हु
शब्दों की गहराई अचूक है !! जब साथ हो जाती है तो नयी दुनिया बना लेती है !! मैं इन्ही शब्दों का शब्दकार हु , शब्दों से खेलना मेरी आदत , शब्दों में जीना मेरी हसरत !! जुडये मेरे साथ , कुछ सुनिए कुछ सुनाइए , एक दुसरे का हौसला बढाइये||
Friday, June 12, 2009
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