अक्सर आती हु तुमसे मिलने
तुम अक्सर मुझे रख़ नही पाते
बिजी हो इतने , न जाने कितने
इस हीरे को अक्सर तुम, परख नही पाते
...
गैरो की आँखों में धुंद्ते रहते हो अक्सर
अपने ही आँखों में, देख नही पाते हो
ऐसा भी क्या रंग है मेरा की
बेरंग इस दुनिया में भी , मुझे धुंद्ते रह जाते हो ......
बंद कर लेते हो मुट्ठियों में,
छोर कर अकेले , हर जगह घूमते हो
मिल गई है एक बार , कहा छोढ़ जायेगी ये
न जाने क्यो अक्सर, यह सोचते हो...
...
वक्त होता हर हर शक्स के लिए
पर मेरे लिए वक्त निकालना मुमकिन नही होता है
चली जाती हु, रूठ कर फिर भी
तुम्हे ख़बर , एक जामने के बाद होता है
..
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