Monday, June 15, 2009

Mai Bachpan hu..




आजाद ,उन्मुक्त
निर्भय , निडर हु मै
बचपन हु मै
..
छोर के चले आए हो दूर इतने
पीछे रह गए है याद कितने
उन यादो की कुछ पुरानी कडिया हु मै
तुम्हारा, बचपन हु मै
..
हजारो नकाबो के पीछे छुपा
एक चेहरा हु तुम्हारा
भूल न जाओ ख़ुद को इन अंजान गलियों में
एक पहरा हु तुम्हारा
बिना रुके जो चलते रहते थे कदम
उन कदमो की आगाज हु मैं
तुम्हारी आवाज हु मैं
बचपन हु मैं..
..
नही तोड़ पाओगे ख़ुद से
वो डोर हु मैं
हर वक्त जब चाहोगे
तुम्हारी ओर हु मैं
अमिट रिस्तो की शुरुआत हु मैं
जो सपने हो रहे है आज पुरे
उन सपनो की मधुर आकर हु मैं
मगन हु तुम्हारा आज को कल से जोड़ने में
तुम्हारे दिल में जम गई दीवारों को तोड़ने में
तुम्हे आइना दिखने में हर वक्त विलीन हु मैं
बचपन हु मैं..
..

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