कभी हसती थी फिजाए जिन गलियों में .
वहां अब सन्नाटो के जाल बिछे हैं .
नन्हे पैरो की छाप जहाँ छोड़ रखी थी मैंने
वहां आंशुओ के लम्बे नहर बन चुके हैं
.................................
दह गयी है वो दीवारे ,जिनके पीछे हम छुपा करते थे
बह गए है वो दरख़्त ,जो वहां खड़े रहते थे .
जहाँ रहती थी अक्सर रौशनी की लम्बी परछाईया
वहां अब दिए भी जला नहीं करते हैं
..................................
बिखरी ज़िन्दगी के पल बचते छुपते रहते हैं .
दिन रात के अंतर खत्म हो रहे हैं .
लाल आँखों से निकली चिनगारिया ही दिखती हैं .
मोम से बने दिल भी सख्त हो रहे हैं
....................................
किधर जाए क्या पता ,राहों के निशा धुल गए हैं .
सुनसान अंधेरो में खूखार भछक घूमते हैं .
बरसो से अब मेरे नन्हे पैरो की आहट नहीं पड़ती
और मौसम के सरगम धीरे धीरे छुप रहे हैं .
वहां अब सन्नाटो के जाल बिछे हैं .
नन्हे पैरो की छाप जहाँ छोड़ रखी थी मैंने
वहां आंशुओ के लम्बे नहर बन चुके हैं
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दह गयी है वो दीवारे ,जिनके पीछे हम छुपा करते थे
बह गए है वो दरख़्त ,जो वहां खड़े रहते थे .
जहाँ रहती थी अक्सर रौशनी की लम्बी परछाईया
वहां अब दिए भी जला नहीं करते हैं
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बिखरी ज़िन्दगी के पल बचते छुपते रहते हैं .
दिन रात के अंतर खत्म हो रहे हैं .
लाल आँखों से निकली चिनगारिया ही दिखती हैं .
मोम से बने दिल भी सख्त हो रहे हैं
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किधर जाए क्या पता ,राहों के निशा धुल गए हैं .
सुनसान अंधेरो में खूखार भछक घूमते हैं .
बरसो से अब मेरे नन्हे पैरो की आहट नहीं पड़ती
और मौसम के सरगम धीरे धीरे छुप रहे हैं .
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चित्र http://www.scaryforkids.कॉम से लिया हुआ
इस शानदार रचना पर बधाई ....जैसे मैंने पहले भी कहा है....बहुत सुन्दर भाव भर दिए हैं आपने ....और तस्वीर के चयन में आपकी पसंद की दाद देता हूँ |
ReplyDeletetruly brilliant..
ReplyDeletekeep writing........all the best rahul ji..