आवारा हवा का, अंजान मुसाफिर हूँ
दिल में न बसू किसी के, ऐसा काफिर hun
छूप जाऊंगा कही, दिख न पाउँगा
सच्चा नही मैं, आशिक हूँ
…
सासों से एक दिन रूह में, उतर जाऊंगा
धीरे धीरे इतने करीब, चला आऊंगा
जी न सकोगी मेरे बिन फिर एक पल
मैं तुम्हारी ज़िन्दगी की, वजह बन जाऊंगा
….
उड़ा ले जाऊंगा तुम्हे, अपने जहाँ में
मेरे दिशाओ में ही हमेशा, ख़ुद को पाओगी
इतना जूनून है मेरे रफ़्तार में
कित तुम मेरी दीवानी, बन ही जाओगी
….
न बंद कर पाओगी, मुझे मुठियों में
न बाँध पाओगी मुझे, आपने दमन से
बिना दिखे निकल जाऊंगा, दूर तुमसे
न रोक पाओगी, मुझे आपने आँगन में
शब्दों की गहराई अचूक है !! जब साथ हो जाती है तो नयी दुनिया बना लेती है !! मैं इन्ही शब्दों का शब्दकार हु , शब्दों से खेलना मेरी आदत , शब्दों में जीना मेरी हसरत !! जुडये मेरे साथ , कुछ सुनिए कुछ सुनाइए , एक दुसरे का हौसला बढाइये||
Saturday, September 23, 2006
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