बाहें खोले बैठे हैं, तेरे इंतज़ार में
कभी आओ ना मेरे पास
बैठो ,
कुछ बातें होगी तो
कुछ बात बनेंगी
कुछ बात बनेंगी तभी तो
कुछ गाँठ बनेगी
बिखरे रिस्तो के धागो में
चलो कुछ जान डालते हैं
खली था ये घर मेरा
चलो , साथ मिल कर
कुछ समान डालते हैं।।।
कभी कहा हैं मैंने तुमसे …
की अच्छी लगती हैं, मुझे तुम्हारी नादानियाँ
हैरान करने वाली तुम्हारी, बचकनिया
चौंका दो मुझे कभी
बेवक़्त ही सही
की बोरियत सी होती हैं मुझे
इन सधे हुए पलो से
की मुस्कुराओ न कभी
ये दूरिया मिटाओ न कभी ।।।
तुम शांत और मैं
बातो के समुंदर
तुम आँखों से कहने वाली
मैं , किताबो से पढ़ने वाला
ये कहने समझने वाले फ़ासले को
चलो, आज तय करते हैं
बहुत सम्हाला हैं, दिल के भावो को
चलो देर से ही हैं , आज लम्हा लम्हा
उसे व्यय करते हैं
कुछ तुम करो कुछ मैं करू
चलो, थोड़ा थोड़ा ही सही
आज तय करते हैं।।।
ये वक़्त
कमवक़्त
जब भी आता हैं , गुजर जाता हैंयाद ही होगा तुम्हे
जब मिले थे,पिछले मौसम में हम
कितना चिढ़ाता था हमे
बिना पूंछे आता था , बिना कहे निकल जाता था
चलो आज बाँध लेते हैं इसे अपने बंधन में
रिश्तो में बंधेगा तो रिश्ता निभाना ही पड़ेगा
चाहे या न चाहे
जब भी बुलाएँगे तो उसे
आना ही पड़ेगा।।।।
seems lot of emotions and memories...... good
ReplyDeleteकोमल भाव..सुंदर रचना
ReplyDeleteरिश्तो में बंधेगा तो रिश्ता निभाना ही पड़ेगा
ReplyDeleteचाहे या न चाहे
जब भी बुलाएँगे तो उसे
आना ही पड़ेगा।।।।
Nice sir, I love to read your blog. Every day I found something new here. Keep Posting. Thanks a lot to share with us
Thank you Sanjay ji.
ReplyDeleteरिश्ते बनाने से बनते हैं ... सुन्दर भावमय शब्द ...
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