कुछ बातें
लगता हैं , राहे लम्बी थी
और सफ़र छोटा
कट गया इस तरह
जैसे थी वो काग़ज की नॉव
कितना भी बचा ले खुद को
उफ़नती नदी से कहाँ बच पाती
समां गयी सागर की बाहो में ॥
कुछ तराने
दास्ताँ छोटी ही रहे तो, अच्छा हैं
कि बूंद बूंद लम्हा, तूफ़ान बना देता हैं
मोम जैसा ये मन कहाँ झेल पायेगा
जो लोहे जैसो को, पिघला देता हैं
विशाल से फैले मन मरू में
ठिकाना मिल तो जाता हैं , मुसाफ़िर को
पर छोड़ के आगे जाने का वक़्त जब
करीब आता हैं तो , मानता नहीं ये मन
कुछ तराने
मुश्किल हैं समझाना मन को
मन को दुहराना पड़ता हैं ॥
अक्सर उलझ जाता हैं वक़्त
कि वक़्त को सुलझाना पड़ता हैं
कुछ बातें
मेरे घर के बगीचे में
बेमौसम फूल निकल आया हैं , रंगो से भरा
एक रेतीली से झड़ी से ,
पास खड़े पौधों को चिढ़ाता रहता हैं , हरदम
सोचता हूँ , कब तक इतराएगा
नादान हैं जानता नहीं कि जैसे ही फूल सूखेगा
बागवान मिटा देगा उसे ,
कि पास खड़े पौधों को , थोड़ी और जगह मिल जाएँ
कुछ तराने
गुज़र जाना ही वक़्त के लिए अच्छा हैं
कि ठहरा हुआ लम्हा, सड़ने लगता हैं
कटे हुए शाख़ को , सजने दो किसी मैखाने में
बाहर पड़ा, नज़रो कि मार से
बेचारा , अकड़ने लगता हैं ॥
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इतनी सादगी से मन की बात कह डाली आपने... गहरे भावों को प्रस्तुत करती सुंदर रचना।।।
ReplyDeleteअभिव्यक्ति दिल को छूती है राहुल जी
बहुत खूब राहुल जी ... कुछ ही कुछ बातों में गहरी बात कह दी ...
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