Friday, December 23, 2011

कौन हो तुम||

ये गाँधी की टोपी
तो मेरे बाप की जागीर है |

कौन हो तुम , जो इसे पहन कर
मेरे दरवाजे पे चिल्ला रहे हो
क्या सोच कर
मेरे  साम्राज्य की नीब
हिला रहे हो  ||

न्याय , अन्याय की परख
तुम्हारे बस की बात कहाँ
कटघरा ही बस जगह है तुम्हारी
हमारी शान में गुस्ताखी करो
ऐसी तुम्हारी औकात कहा ||

आम आदमी हो , आम ही रहना सीखो
वरना गुठलियों की तरह चूस लियो जाओगे
बंद कर देंगे हुक्का पानी तो
हर बूंद के लिए तरस जाओगे ||

6 comments:

  1. very nicely crafted.
    - Santosh

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  2. नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.

    शुभकामनओं के साथ
    संजय भास्कर

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  3. umda prastuti..
    नव वर्ष मंगलमय हो ..
    बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें

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