ये गाँधी की टोपी
तो मेरे बाप की जागीर है |
कौन हो तुम , जो इसे पहन कर
मेरे दरवाजे पे चिल्ला रहे हो
क्या सोच कर
मेरे साम्राज्य की नीब
हिला रहे हो ||
न्याय , अन्याय की परख
तुम्हारे बस की बात कहाँ
कटघरा ही बस जगह है तुम्हारी
हमारी शान में गुस्ताखी करो
ऐसी तुम्हारी औकात कहा ||
आम आदमी हो , आम ही रहना सीखो
वरना गुठलियों की तरह चूस लियो जाओगे
बंद कर देंगे हुक्का पानी तो
हर बूंद के लिए तरस जाओगे ||
तो मेरे बाप की जागीर है |
कौन हो तुम , जो इसे पहन कर
मेरे दरवाजे पे चिल्ला रहे हो
क्या सोच कर
मेरे साम्राज्य की नीब
हिला रहे हो ||
न्याय , अन्याय की परख
तुम्हारे बस की बात कहाँ
कटघरा ही बस जगह है तुम्हारी
हमारी शान में गुस्ताखी करो
ऐसी तुम्हारी औकात कहा ||
आम आदमी हो , आम ही रहना सीखो
वरना गुठलियों की तरह चूस लियो जाओगे
बंद कर देंगे हुक्का पानी तो
हर बूंद के लिए तरस जाओगे ||
very nicely crafted.
ReplyDelete- Santosh
Thank you santosh!!
Deleteनववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteशुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
Thanks you Sanjay Ji...
Deleteumda prastuti..
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो ..
बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें
Thank you Surendar Ji
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