हाथ में नहीं तो
दिल में मशाल जलाये रखना है देख नहीं सकते, गद्दारों को लुटते अपने वतन को
हर आँख को अब हमे, जगाये रखना है
__जब तक आवाज है सीने में
आजाद हो
जब तक डर नहीं है जीने में
आजाद हो ...देख कर बेगुनाहों पे सितम
कुछ होता है अगर
तो आजाद हो ...है अगर गद्दारों से
लोहा लेने का जिगर
तो आजाद हो ...
कर लो खुद से वादा
आजाद ही रहना है , जिंदा हूँ जब तक
बेड़िया न डाले कोई , जिन्दा हूँ अब तक
करते रहोगे जब तक ज़द्दो ज़हद तो आजाद हो ,
.............................
समसामयिक, सार्थक और सच्चा उदघोष
ReplyDeleteBrilliant post..
ReplyDeleteThoughtful and with strong emotions !!
सार्थक लेखन ..
ReplyDeleteहै अगर गद्दारों से लोहा लेने का ज़िगर।
ReplyDeleteबहुत अच्छी पंक्ति एवं रचना।