Sunday, May 22, 2011

गैर

उन्हें  जन्नत   दी  है  तोफे  में

हमे  तो  दोजख   में  भी  ठिकाना  ना   मिला

हर  दुआ  और  दवा  उनको  मिली

हमे  तो  दर्द  बताने  का  भी , बहाना ना   मिला ||



की  परदे  में  हम  हैं

या  उन्होंने  चेहरा  छुपा  लिया 

नज़रो  से  मिलती  नज़र  नहीं  आज  कल , तो  

हमे  भुलाने  का  बहाना  बना  लिया  ||



बिछी  हर बिसात उनके  लिए

हमे  तो  जंगे   जहद  से  ही  निकाल  डाला

हर  फतह  में  नामो  –शोहरत   मिली  उनको

हमरे  खून  को  तो उन्होंने , पानी  बना  डाला  ||



इस  अंधेर  नगरी  में  

अंधो  का  बोलबाला  है

शोर  माचाने  बाले  जिंदा  रहते  है  यहाँ

आँख  वालो  का  मुह  काला  है  ||

6 comments:

  1. अच्छी रचना ..थोड़ा वर्तनी त्रुटि है शायद टाइपिंग की गल्ती से ..

    ReplyDelete
  2. धन्यबाद !! हिंदी में लिखना कम हो गया है आज कल इसलिए कुछ गलतिया कर जाता हूँ

    ReplyDelete
  3. हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

    ReplyDelete
  4. बहुत ही बढ़िया..
    मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion

    ReplyDelete
  5. राहुल जी आपकी EK PURANI रचना यहाँ पर पोस्ट की है मैंने
    http://www.sahityapremisangh.com/2011/06/aimless.html

    ReplyDelete
  6. इस अंधेर नगरी में

    अंधो का बोलबाला है

    शोर माचाने बाले जिंदा रहते है यहाँ

    आँख वालो का मुह काला है ||

    sundar prastuti...samaj ki asal tasveer..

    ReplyDelete

कुछ कहिये

नक़ाब