Wednesday, December 01, 2010

बचपन के सेलेट

काश अपनी ज़िन्दगी
बचपन के सेलेटो की तरह होती
बन गए इन लकीरों को
मिटाने में मुश्किल नहीं होती

एक बूंद कभी पानी तो कभी
एक अक्स ही काफी होता
हथेलियों से मिट जाते हर लफ्ज
हर कहानी के लिए जगह काफी होता

हर लफ्ज के साथ
इसके सीने में उसके रचनाकार दफ़न हो जाते
कहानी भी होती छोटी
सब राज दफ़न हो जाते ||

3 comments:

  1. पर जिंदगी सलेट नहीं है ...
    जो लिखना होगा सोच समझ कर ही ..!

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  2. प्रिय राहुल जी..
    नमस्कार !
    बहुत समय बाद आपके यहां पहुंचा हूं , पुरानी कई पोस्ट्स भी पढ़ी हैं अभी । निरंतर अच्छे सृजन-प्रयासों के लिए साधुवाद !
    … प्रस्तुत कविता भी बहुत भावनात्मक संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है …

    आप स्वस्थ , सुखी , प्रसन्न और दीर्घायु हों , हार्दिक शुभकामनाएं हैं …
    संजय भास्कर

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