Wednesday, September 29, 2010

आज का महाभारत

तन्हा  बिखर  सा  गया  है 
कुछ  शब्द   कहानियो  से  उतर  सा  गया  है 
दूर  चला  है  जो  रौशन   ज़हां   को  छोड़   के 
ये  मन  कुछ  उजाड़  सा  गया  है ||

ये  जो  कुरुछेत्र  सा  हर  जगह  छाया  है| 
हर  कोई  ने  खुद  को  पांडव 
और  दुसरे  को  कौरव  बताया  है|| 
लुट  रही  है  द्रौपदी की  तरह  सच  की  इज्जत |
ये  दुशाशन  क्यों  सबके  मन  पे  चढ़  आया  है|| 

क्यों  सब  राम  नंगे   पैरो  ,
बेबस  जंगलो  में  घूम  रहें  हैं |
पवनपुत्र   का  भेष   बदल  के 
हर  रावण  उनका  रक्त  चूस  रहें  हैं ||

कलयुग  में  रचे  गए  ग्रंथो  में |
कौरव  का  ही  बोलबाला  है|| 
हर  रचे  गए  महाभारत  में  यहाँ अब|  
अधर्म  ही  जीतने  वाला  है ||


3 comments:

  1. बहुत उम्दा!

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  2. sunder :)

    http://liberalflorence.blogspot.com/

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  3. सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.

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