तन्हा बिखर सा गया है
कुछ शब्द कहानियो से उतर सा गया है
दूर चला है जो रौशन ज़हां को छोड़ के
ये मन कुछ उजाड़ सा गया है ||
ये जो कुरुछेत्र सा हर जगह छाया है|
हर कोई ने खुद को पांडव
और दुसरे को कौरव बताया है||
लुट रही है द्रौपदी की तरह सच की इज्जत |
ये दुशाशन क्यों सबके मन पे चढ़ आया है||
क्यों सब राम नंगे पैरो ,
बेबस जंगलो में घूम रहें हैं |
पवनपुत्र का भेष बदल के
हर रावण उनका रक्त चूस रहें हैं ||
कलयुग में रचे गए ग्रंथो में |
कौरव का ही बोलबाला है||
हर रचे गए महाभारत में यहाँ अब|
अधर्म ही जीतने वाला है ||
बहुत उम्दा!
ReplyDeletesunder :)
ReplyDeletehttp://liberalflorence.blogspot.com/
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.
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