(Refers to yEt aGain , oNe mOre tRain acciDent on 19th जुलाई 2010)
फिर से हुआ है खून
शांत से बैठे
मूक बधिर हम जैसे परिंदों का
आज फिर लहूलुहान ट्रेनों ने
रक्त स्नान किया है
…
ये कैसी प्यास है
बेजान ट्रेनों का
जिसने हर दुसरे दिन
बेबस हम जैसे परिंदों का
रक्त पान किया हैं
....
क्यों बुझती नहीं प्यास इसकी
क्यों , कोई इसकी तृष्णा मिटाता नहीं
फिर ना धोये खून से ये हाथ अपने
कोई क्यों ऐसा , दिन आता नहीं
शब्दों की गहराई अचूक है !! जब साथ हो जाती है तो नयी दुनिया बना लेती है !! मैं इन्ही शब्दों का शब्दकार हु , शब्दों से खेलना मेरी आदत , शब्दों में जीना मेरी हसरत !! जुडये मेरे साथ , कुछ सुनिए कुछ सुनाइए , एक दुसरे का हौसला बढाइये||
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
कभी देख लो एक नज़र इधर भी की रौशनी का इंतज़ार इधर भी हैं मुस्कुरा के कह दो बातें चार की कोई बेक़रार इधर भी हैं || समय बदलता रहता हैं हर...
-
कभी मैं जो रास्ता बनु तुम मेरी मंजिल, बन जाना कभी मैं तुममे और तुम मुझमे इस तरह सिमट जाना कभी || की जब बनु मैं सोच तुम अहसास बन जाना ...
...bhaavpoorn rachanaa !!!
ReplyDelete