Kaagajo ke naawo pe
Ye zindagi ke samundar naap rahe hai
Lahro lahro me uthte tufaano ko
Isi choti kasti se kaat rahe hai
...
Duur tak khali hai ye saumndar ki tarah
Bas dikhabati kinaaro ki jaise
Uttha patak chalti rahti hai
Sab aahsaas iki gahraayo me chupe hai
Bahar se bas sab shant hi dikhti rahti hai
....
Duur base taapu ki tarah
Har manzil duur hi dikhti hai
Hazar aanjaan raahe pahuchne ki untak
Mere paas bichi hi rahti hai
...
Kon disha me jaaye, pata nahi
had dishaye ek jaisi lagti hai
Har kagak ke naawo ki kahani
Shayad mere jaisi hi dihkti hai
शब्दों की गहराई अचूक है !! जब साथ हो जाती है तो नयी दुनिया बना लेती है !! मैं इन्ही शब्दों का शब्दकार हु , शब्दों से खेलना मेरी आदत , शब्दों में जीना मेरी हसरत !! जुडये मेरे साथ , कुछ सुनिए कुछ सुनाइए , एक दुसरे का हौसला बढाइये||
Friday, July 21, 2006
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