ये गाँधी की टोपी
तो मेरे बाप की जागीर है |
कौन हो तुम , जो इसे पहन कर
मेरे दरवाजे पे चिल्ला रहे हो
क्या सोच कर
मेरे साम्राज्य की नीब
हिला रहे हो ||
न्याय , अन्याय की परख
तुम्हारे बस की बात कहाँ
कटघरा ही बस जगह है तुम्हारी
हमारी शान में गुस्ताखी करो
ऐसी तुम्हारी औकात कहा ||
आम आदमी हो , आम ही रहना सीखो
वरना गुठलियों की तरह चूस लियो जाओगे
बंद कर देंगे हुक्का पानी तो
हर बूंद के लिए तरस जाओगे ||
तो मेरे बाप की जागीर है |
कौन हो तुम , जो इसे पहन कर
मेरे दरवाजे पे चिल्ला रहे हो
क्या सोच कर
मेरे साम्राज्य की नीब
हिला रहे हो ||
न्याय , अन्याय की परख
तुम्हारे बस की बात कहाँ
कटघरा ही बस जगह है तुम्हारी
हमारी शान में गुस्ताखी करो
ऐसी तुम्हारी औकात कहा ||
आम आदमी हो , आम ही रहना सीखो
वरना गुठलियों की तरह चूस लियो जाओगे
बंद कर देंगे हुक्का पानी तो
हर बूंद के लिए तरस जाओगे ||