Friday, December 23, 2011

कौन हो तुम||

ये गाँधी की टोपी
तो मेरे बाप की जागीर है |

कौन हो तुम , जो इसे पहन कर
मेरे दरवाजे पे चिल्ला रहे हो
क्या सोच कर
मेरे  साम्राज्य की नीब
हिला रहे हो  ||

न्याय , अन्याय की परख
तुम्हारे बस की बात कहाँ
कटघरा ही बस जगह है तुम्हारी
हमारी शान में गुस्ताखी करो
ऐसी तुम्हारी औकात कहा ||

आम आदमी हो , आम ही रहना सीखो
वरना गुठलियों की तरह चूस लियो जाओगे
बंद कर देंगे हुक्का पानी तो
हर बूंद के लिए तरस जाओगे ||

नादान, ये प्यार

कुछ खामोशियो से उलझी
लताएँ ||
दिल के दरारों से
उग आई हैं ये ||
आँखों के पानी से सीचा है
खुद को  ||
तभी तो वक़्त को जीत पायी हैं
ये ||

नादान है ये प्यार ,
बूंदों की तरह , ज़मी को छूना चाहता है ||
कुछ सहारा मिल जाए , दो टुकड़ा ही सही
अपने पैरो पे खड़ा होना चाहता है ||

भूल  जाता है , की
बेबस लताओं की, कोई ऊचाई नहीं होती |
जो पनपते हैं , दिल के गहरायियो में
उनकी कोई परछाई नहीं होती ||

मानता नहीं है
उम्मीदों के पंख लगा के
उड़ जाना चाहता है |
इसे तलाश है अपने गगन की
हर रिश्ता तोड़ कर
उसी रस्ते पे
मुड जाना चाहता है ||

नक़ाब