
छोटा से बचपन में
अक्सर खो सा जाया करता हु..
कभी तालावों पे, तो कभी पग्दंदियो पे..
तो कभी बरगद के शाखाओ पे..
सो सा जाया करता हु...
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कभी दादी के किस्से
कुछ कहानियों के हिस्से
सुबह सबेरो के सैर सपाटे
कभी मम्मी के दो चार झापते
उन्ही आवाजो को दिल से, लगाये रहता हु
इतना बेचारा निर्दोष सा बचपन हैं मेरा
इसलिए उसे आज कल के निगाहों से, बचाए रखता हु
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इन्ही से प्यार करता हु
इन्ही को याद करता हु
यही हैं मेरी, छोटी सी लव स्टोरी
इसी को छुपा के, रखता हु
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