तुम हमारे बिन वहा जी रही हो
हम तुम्हारे बिन , कहा जी रहे है
खुश हो तुम वहा , आपनो की बाहो मे
हम यहा गैर होने का, ज़हर पी रहे है
...
प्यार करने के सजा , क्यू अलग अलग हुई है
तुम्हारी ज़िंदगी खुशी , हर तरफ खिली हुई है
हमे तो मिलने, दो चार खुशिया भी नही आती
आपकी बेवफ़ाई की सजा , हमें क्यू मिली है
....
इस कदर सिर्फ़ हम ही मजबूर क्यू है
क्यू तन्हा सिर्फ़ हम ही क्यू रह गये है
आपके मौसम मे बसंत ही बसंत है
हमरे किस्मत मे पतझड़ ही क्यू छा गये है
....
ये कैसा इंसाफ़ है आए खुदा
की हम बेक़ुसूर हो कर भी बार बार रोए
जिसने तोड़ दिए सारे वादे एक पल मे
उन्हे छोर कर मेरे राहो मे काटे बोए
शब्दों की गहराई अचूक है !! जब साथ हो जाती है तो नयी दुनिया बना लेती है !! मैं इन्ही शब्दों का शब्दकार हु , शब्दों से खेलना मेरी आदत , शब्दों में जीना मेरी हसरत !! जुडये मेरे साथ , कुछ सुनिए कुछ सुनाइए , एक दुसरे का हौसला बढाइये||
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