Tuesday, December 29, 2015

वो और मैं


कभी देखा हैं खुद को
क्या खुद से कभी बात की हैं ?
मिलते रहते हो सबसे रोज रोज
कभी खुद से मुलाकात की हैं ?

ज़िन्दगी हर किसी को एक मौका देती हैं
कभी सवाल तो कभी जवाब की तरह
हर डूबते को, एक नौका देती हैं
शुक्रगुजार हूँ,  ज़िन्दगी का जिसने रास्ता दिखा दिया
भटके इस मुसाफिर का , हौसला बढ़ा दिया


की हर दर्दो की  दवा खुद में मिली
हर  मर्ज  का इलाज भी  "मैं"  ही में मिला
जब खुद को जाना तो जाना की 
मैं उसमे मिला और वो मुझमे मिला

वो जो सब में निहित हैं और जिसमे सब  निहित हैं 

वो जो एक हैं अनेक में और, जो अनेक हैं एक में
उसे ही ढूंढ़ता था मैं , इन आँखों की चश्मे से
पर वो मिला परे कहीं , जहाँ मैं नहीं था
जहाँ , मैं नहीं था
मैं नहीं था
..

Wednesday, April 22, 2015

इश्क़ क़ायम हैं


इश्क़ कल भी था 
आज भी हैं, और 
कल भी रहेगा ॥ 

भले ही, वो प्यार जो 
लिफ़ाफ़े के बंद लफ्ज़ो में पनपता था |
आज whatsapp पिंग की 
आवाज पे दस्तक देता हैं | 
पर,
आँखों के पटल में बैठा , 
वो इंतज़ार उसकी बातो का 
चिट्ठियों से पिंग तक 
आज भी कायम हैं । । 

चौराहो के खाँसते, बिज़ली के खम्भों से 
उठकर चाहें ही मुलाकातें, 
कॉफ़ी डे  की लॉन्ज पे पहुँच गयी  हो | 
पर  गुफ्तगू  आँखों की हो तो ,
भीड़  न चौराहों की परेशान करती थी तब   
न  ही शोर म्यूजिक का , थाम पाता हैं इसे ॥ 

की चाहत परे हैं , इस वक़्त के बदलते करवटों से 
न कल की  दूरिया  , न ही आज की नजदीकियां 
बुझा  पाएँगी वो आग, जो दो दिल में बसती है  
वो जलती रहेगी , साँसों की गिरहो  की  छोर तक 
और फिर, कोई और बाँध देगा एक नई  गाँठ , 
और फिर शुरू हो जाएगी, एक नयी  कहानी  । 

Love Continues …… 


नक़ाब