Sunday, June 22, 2014

गुज़ारिश ...



बाहें खोले बैठे हैं, तेरे इंतज़ार में
कभी आओ ना मेरे पास
बैठो ,
कुछ बातें होगी तो
कुछ बात बनेंगी
कुछ बात बनेंगी तभी तो
कुछ  गाँठ बनेगी
बिखरे रिस्तो के धागो में
चलो कुछ जान डालते हैं
खली था ये घर मेरा
चलो , साथ मिल कर
कुछ समान  डालते हैं।।।

कभी कहा हैं मैंने तुमसे …

की अच्छी लगती हैं, मुझे तुम्हारी नादानियाँ
हैरान करने वाली तुम्हारी, बचकनिया
चौंका दो मुझे कभी
बेवक़्त ही सही
की बोरियत सी होती हैं मुझे
इन सधे हुए पलो से
की  मुस्कुराओ न कभी
ये दूरिया मिटाओ न कभी ।।।

तुम शांत और मैं
बातो के समुंदर
तुम आँखों से कहने वाली
मैं , किताबो से पढ़ने वाला
ये कहने समझने वाले फ़ासले को
चलो, आज तय करते हैं
बहुत सम्हाला हैं, दिल के भावो को 
चलो देर से ही हैं , आज लम्हा लम्हा
उसे व्यय करते हैं
कुछ तुम करो कुछ मैं करू 
चलो, थोड़ा थोड़ा ही सही
आज तय करते हैं।।।

ये वक़्त 
कमवक़्त 
जब भी आता हैं , गुजर जाता हैं
याद ही होगा तुम्हे
जब मिले थे,पिछले मौसम में हम
कितना चिढ़ाता था हमे
बिना पूंछे आता था  , बिना कहे निकल जाता था
चलो आज बाँध लेते हैं इसे अपने बंधन  में
रिश्तो में बंधेगा तो रिश्ता निभाना ही पड़ेगा
चाहे या न चाहे
जब भी बुलाएँगे तो उसे
आना ही पड़ेगा।।।।










नक़ाब