Saturday, March 03, 2012

रिश्ता और मैं

कवि के शब्द : ये कविता के माध्यम से कवि आज कल के रिश्तों पे एक नज़र डालता है । थके हुए इन रिश्तों की दवा कुछ और है , और लोग इलाज कुछ और करते हैं ।।

सुराख़ इतने थे दिल में 
प्यार कतरा कतरा बहते रहे 
सूखता रहा समुंदर दिल का
हम झरना कही खोजते रहे ||

दिल बन गया मरासिम का कब्रगाह 
और हम कहीं  शमशानों में अपनों को ढूढते रहे 
जलता रहा हर रिश्ता धू धू कर 
हम बदलो से  पानी  को पूंछते  रहे ।।

वक़्त चलता रहा चाल अपनी
और लोग अपनी राहें बदलते रहे
होती गयी मेरी ज़िन्दगी खाली सी 
हम गड्ढो को भरने में लगे रहे ।।


अब शहरो में बस गए हैं हम
की तन्हाई की आदत जो लग गई  हैं 
लाखो चेहरों  में छुप कर सुकून मिलता है ,
भागते इन शहरो में ,  मेरी ज़िन्दगी 
कहीं तो रुक गयी है ।।

नक़ाब