लफ्ज कहाँ मिलते हैं
हमें कोई बता दे ज़रा
हमे भी दो चार आने के
बातें खरीदनी है ||
की अक्सर प्यार बताना
मुस्किल पड़ता है मुझको
कभी राते तो कभी बातें
कम पड़ जाती हैं ||
ये मन सोचता है कुछ कहने को
पर पेट के अंदर तितलिया उडती हैं
होटो से आती नहीं बाते बाहर
दिल की बाते दिल में ही रहती हैं||
आती है वो , आकर चली जाती हैं
हम लफ्जो को गिनते रह जाते हैं
जान नहीं पते खुद के मन को
उनके चहरे को पदते रह जाते हैं |
शब्दों की गहराई अचूक है !! जब साथ हो जाती है तो नयी दुनिया बना लेती है !! मैं इन्ही शब्दों का शब्दकार हु , शब्दों से खेलना मेरी आदत , शब्दों में जीना मेरी हसरत !! जुडये मेरे साथ , कुछ सुनिए कुछ सुनाइए , एक दुसरे का हौसला बढाइये||
Thursday, July 22, 2010
Sunday, July 18, 2010
Ye kaIsi pYas hAi
(Refers to yEt aGain , oNe mOre tRain acciDent on 19th जुलाई 2010)
फिर से हुआ है खून
शांत से बैठे
मूक बधिर हम जैसे परिंदों का
आज फिर लहूलुहान ट्रेनों ने
रक्त स्नान किया है
…
ये कैसी प्यास है
बेजान ट्रेनों का
जिसने हर दुसरे दिन
बेबस हम जैसे परिंदों का
रक्त पान किया हैं
....
क्यों बुझती नहीं प्यास इसकी
क्यों , कोई इसकी तृष्णा मिटाता नहीं
फिर ना धोये खून से ये हाथ अपने
कोई क्यों ऐसा , दिन आता नहीं
फिर से हुआ है खून
शांत से बैठे
मूक बधिर हम जैसे परिंदों का
आज फिर लहूलुहान ट्रेनों ने
रक्त स्नान किया है
…
ये कैसी प्यास है
बेजान ट्रेनों का
जिसने हर दुसरे दिन
बेबस हम जैसे परिंदों का
रक्त पान किया हैं
....
क्यों बुझती नहीं प्यास इसकी
क्यों , कोई इसकी तृष्णा मिटाता नहीं
फिर ना धोये खून से ये हाथ अपने
कोई क्यों ऐसा , दिन आता नहीं
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