काश अपनी ज़िन्दगी
बचपन के सेलेटो की तरह होती
बन गए इन लकीरों को
मिटाने में मुश्किल नहीं होती
एक बूंद कभी पानी तो कभी
एक अक्स ही काफी होता
हथेलियों से मिट जाते हर लफ्ज
हर कहानी के लिए जगह काफी होता
हर लफ्ज के साथ
इसके सीने में उसके रचनाकार दफ़न हो जाते
कहानी भी होती छोटी
सब राज दफ़न हो जाते ||
शब्दों की गहराई अचूक है !! जब साथ हो जाती है तो नयी दुनिया बना लेती है !! मैं इन्ही शब्दों का शब्दकार हु , शब्दों से खेलना मेरी आदत , शब्दों में जीना मेरी हसरत !! जुडये मेरे साथ , कुछ सुनिए कुछ सुनाइए , एक दुसरे का हौसला बढाइये||
Wednesday, December 01, 2010
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मंजिलो में चलते चलते कुछ राह बदल जातें हैं शुरुआत कहाँ होती है ये ख्तम कहीं होते है .... अक्सर राहो में चलते चलते हमराह बदल जातें है एक मोड़...
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किसी के इश्क की इम्तिहा न ले कोई किसी के सब्र की इंतिहा न हो जाए प्यार मर न जाए प्यासा यु ही और आंशुओ के सैलाब में ज़िन्दगी न बह जाये … ...
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ये गाँधी की टोपी तो मेरे बाप की जागीर है | कौन हो तुम , जो इसे पहन कर मेरे दरवाजे पे चिल्ला रहे हो क्या सोच कर मेरे साम्राज्य की नीब ...
पर जिंदगी सलेट नहीं है ...
ReplyDeleteजो लिखना होगा सोच समझ कर ही ..!
... kyaa baat hai !!!
ReplyDeleteप्रिय राहुल जी..
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत समय बाद आपके यहां पहुंचा हूं , पुरानी कई पोस्ट्स भी पढ़ी हैं अभी । निरंतर अच्छे सृजन-प्रयासों के लिए साधुवाद !
… प्रस्तुत कविता भी बहुत भावनात्मक संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है …
आप स्वस्थ , सुखी , प्रसन्न और दीर्घायु हों , हार्दिक शुभकामनाएं हैं …
संजय भास्कर