Tuesday, December 29, 2015

वो और मैं


कभी देखा हैं खुद को
क्या खुद से कभी बात की हैं ?
मिलते रहते हो सबसे रोज रोज
कभी खुद से मुलाकात की हैं ?

ज़िन्दगी हर किसी को एक मौका देती हैं
कभी सवाल तो कभी जवाब की तरह
हर डूबते को, एक नौका देती हैं
शुक्रगुजार हूँ,  ज़िन्दगी का जिसने रास्ता दिखा दिया
भटके इस मुसाफिर का , हौसला बढ़ा दिया


की हर दर्दो की  दवा खुद में मिली
हर  मर्ज  का इलाज भी  "मैं"  ही में मिला
जब खुद को जाना तो जाना की 
मैं उसमे मिला और वो मुझमे मिला

वो जो सब में निहित हैं और जिसमे सब  निहित हैं 

वो जो एक हैं अनेक में और, जो अनेक हैं एक में
उसे ही ढूंढ़ता था मैं , इन आँखों की चश्मे से
पर वो मिला परे कहीं , जहाँ मैं नहीं था
जहाँ , मैं नहीं था
मैं नहीं था
..

नक़ाब